विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव
magnatic effect of electric current.
विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव :-
किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर चुम्बकीय। क्षेत्र उत्पन्न होने की घटना को विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं ।
चुम्बकीय क्षेत्र :-
किसी चुम्बक के चारो ओर का वह क्षेत्र जहाँ तक चुम्बकीय बल का अनुभव किया जाता है , चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय सुई के उत्तरी ध्रुव के चलने के मार्ग को चुम्बकीय बल रेखा कहते है।
दाहिने हाथ के अंगूठे का नियम :-
यदि अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़ते हैं कि अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो , तो आपकी उंगलियां चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय बल रेखाओं की दिशाओ को प्रदर्शित करेगी ।
मैक्सवेल का नियम:-
यदि हम किसी पेंचकस को दाएं हाथ में पकड़कर इस प्रकार घुमाए कि पेंच की नोक चालक में बहने वाली धारा की दिशा में आगे बढ़े तो जिस दिशा में पेंच को घुमाने के लिए अंगूठा घूमता है वही चुम्बकीय बल रेखाओ की दिशा होगी ।
पाश या लूप :-
चालक तार को मोड़ने से बनी वृत्ताकार आकृति को पाश या लूप कहते हैं ।
परिनालिका :-
विद्युत रोधी चालक तारों के अनेक पैरों से बनी बेलनाकार आकृति को परिनालिका कहते हैं ।
फ्लेमिंग के बाएं हाथ का नियम:-
इस नियम के अनुसार अपने बाएं हाथ की तर्जनी मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार पर फैलाइये की ये एक दूसरे के परस्पर लंबवत हो ।
यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है एवं मध्यमा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करे तो अंगूठा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।
विद्युत चुंबकीय प्रेरण :-
जब चुम्बक और कुंडली के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो कुंडली में धारा उत्पन्न हो जाती है । इस धारा को प्रेरित धारा करते हैं तथा इस घटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण करते हैं ।
फैराडे का नियम :-
प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है ।इसे फैराडे का नियम कहते हैं ।
विद्युत मोटर :-
परिभाषा:-
विद्युत मोटर वह यंत्र है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करता है ।
सिद्धांत :-
चुंबकीय क्षेत्र में रखी कुंडली विद्युत धारा प्रवाहित होने पर फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम अनुसार कार्य करती है ।
रेखाचित्र :-
विद्युत मोटर के मुख्य भाग :-
1- क्षेत्र चुंबक N S ,
2-कुंडली या आर्मेचर,
3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2,
4- ब्रुश B1 B2
1- क्षेत्र चुम्बक N S :-
यह अस्थाई चुंबक होता है ।
2- कुंडली या आर्मेचर :-
नरम लोहे के फ्रेम के ऊपर विद्युत रोधी चालक तारों को लपेटकर कुंडली बनाई जाती है जो एक धुरी पर घूमती है ।
3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2 :-
धातु के एक वलय को बीच से काटकर बनाए गए दो अर्धवृत्ताकार वलय कुंडली के सिरे इन विभक्त सर्पी वलयो से अलग अलग जुड़े होते हैं ।
4- ब्रुश B1 B2 :-
कार्बन या धातु की पत्तियों से बने ये ब्रुश दोनो विभक्त सर्पी वलयो S1 S2 को छूते रहते हैं । आर्मेचर ABCD में विद्युत धारा ब्रुश B1 B2 से होकर प्रवाहित होती है ।
कार्य विधि :-
कुंडली में धारा प्रवाहित होने पर यह फ्लेमिंग के बाँये हाथ के नियम अनुसार आधा चक्र पूर्ण कर लेती है तब सर्पि वलय की स्थिति बदल जाती है और यह वापस अपना चक्र पूर्ण कर लेती है इस प्रकार विद्युत मोटर में कुंडली घूमती रहती है और धारा की दिशा एक ही रहती है।
फ्लेमिंग के दाहिने हाथ का नियम :-
इस नियम के अनुसार अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि यह तीनों एक दूसरे के परस्पर लंबवत हो तब यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित धारा की दिशा दर्शाएगी।
डी सी जनित्र :-
परिभाषा :-
वह उपकरण जो यांत्रिक ऊर्जा को दिष्ट धारा में बदलता है डी सी जनित्र कहलाता है ।
सिद्धांत :-
विद्युत जनित्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
रेखाचित्र :-
डी सी जनित्र के मुख्य भाग :-
1- क्षेत्र चुंबक N S ,
2-कुंडली या आर्मेचर,
3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2,
4- ब्रुश B1 B2
कार्यविधि :-
जब कुंडली या आर्मेचर को घुमाया जाता है तो फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियमानुसार इसमें बाह्य परिपथ में धारा उत्पन्न होती है।
विद्युत धारा :-
आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं ।
धारा दो प्रकार की होती है -
1- सरल धारा या दिष्ट धारा
2 - प्रत्यावर्ती धारा
1- सरल या दिष्ट धारा (DC):-
वह धारा जिसके प्रवाह की दिशा समय के साथ सदैव धनात्मक बनी रहती है दिष्ट धारा कहलाती है ।
सेल या बैटरी से प्राप्त धारा दिष्ट धारा होती है ।
2- प्रत्यावर्ती धारा ( AC) :-
वह विद्युत धारा जिसके प्रवाह की दिशा समय के साथ धनात्मक या ऋणात्मक होती रहती है , प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है ।
घर में प्रदाय होने वाली धारा प्रत्यावर्ती धारा होती है।
घरेलू विद्युत परिपथ :-
घर में प्रयुक्त होने वाली प्रत्यावर्ती धारा का विभवांतर सामान्यतः 220 वोल्ट तथा आवृत्ति 50 चक्कर प्रति सेकंड होती है।
घरेलू विद्युत परिपथ में प्रत्येक उपकरण को प्रत्यावर्ती धारा स्त्रोत से समानांतर क्रम में जोड़ा होता है ।
घरेलू विद्युत परिपथ में तीन रंग के आवरण वाले तार होते हैं।
लाल रंग का विद्युत रोधी तार होता है जिसे विद्युतमय या धनात्मक तार तथा काले रंग के आवरण वाला उदासीन तार या ऋणात्मक तार होता है ।
विद्युतमय तार तथा उदासीन तार के बीच 220 वोल्ट का विभवांतर होता है ।यह दोनों तार एक मुख्य फ्यूज से होते हुए विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं । इसके पश्चात यह दोनों तार मुख्य स्विच (मेन स्विच ) से होते हुए घर के अंदर लगी विद्युत लाइन से जोड़े जाते हैं । विद्युत लाइन के तार घर के अन्य विद्युत उपकरणों जैसे बल्ब, ट्यूब लाइट, पंखा , कूलर आदि से समांतर क्रम परिपथ बनाते हुए जुड़े रहते हैं।
घर की विद्युत लाइन से एक हरे रंग के रबर का आवरण युक्त तार भी होता है जिससे भू संपर्क तार या अर्थिंग कहते हैं । यह तार विद्दुत लाइन के द्वारा घर के सभी विद्युत उपकरणों से जुड़ा रहता है । इस तार का एक सिरा घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से जुड़ा रहता है ।
भू संपर्क तार विद्युत उपकरण के ऊपर क्षरित अवांछित विद्युत धारा को अपने में से गुजार कर पृथ्वी में पहुंचा देता है। इस प्रकार विद्युत उपकरणों का उपयोग करते समय उपभोक्ता विद्युत आघात से बचे रहते हैं।
लघुपथन या शॉर्ट सर्किट :-
विद्युतमय तार तथा उदासीन तार के एक दूसरे के संपर्क में आ जाने के कारण विद्युत धारा के अचानक प्रवाह को लघुपथन या शार्ट सर्किट कहते हैं।
अतिभारण (ओवरलोडिंग ) :-
जब किसी परिपथ में अत्यधिक मात्रा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो इसे अतिभारण कहते हैं ।
फ्यूज तार :-
विद्युत परिपथ को लघुपथन तथा अतिभारण से होने वाली हानि से बचाने के लिए विद्युतमय तार के श्रेणी क्रम में एक उच्च प्रतिरोध तथा कम गलनांक का तार जोड़ा जाता है, जिसे फ्यूज तार कहते हैं ।
विद्युत के उपयोग में सावधानियां :-
हमें विद्युत का उपयोग करते समय निम्न सावधानियां रखनी चाहिए -
1 - घर के सभी उपकरण भू संपर्क तार से जुड़े होने चाहिए।
2- स्विच को ऑन ऑफ करते समय हाथ गीले नहीं होने चाहिए।
3- विद्युत उपकरणों का उपयोग रबर या प्लास्टिक की चप्पल पहनकर करना चाहिए।
4- विद्युत परिपथ में उचित गुणवत्ता के फ्यूज का उपयोग करना चाहिए ।
5- विधुत परिपथ के सभी संयोजन ठीक से कसे होने चाहिए तथा कोई तार खुला नहीं होना चाहिए।
6- विद्युत तार ,प्लग , साकेट तथा होल्डर उच्च गुणवत्ता के होने चाहिए।
7- विद्युत का उपयोग मितव्यवता से करना चाहिए।
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