Sunday, 14 January 2018

ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत ( non renewable energy sources )

ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत ( non renewable energy sources)

ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत :-

ऊर्जा के वे स्त्रोत जिनका निरंतर उपयोग करने पर एक सीमा के बाद समाप्त हो जाते हैं उन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत कहते हैं ।

जैसे- कोयला , प्राकृतिक गैस ,पेट्रोलियम आदि ।

जीवाश्म ईंधन :-

जीवाश्म ईंधन ऊर्जा मुक्त कार्बन यौगिकों के वे अणु है जिनका निर्माण मूलतः सौर ऊर्जा के उपयोग से वनस्पतियों और अन्य जीवों से हुआ है ।

उदाहरण - कोयला ,पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस आदि।

कोयला :-

जब किसी कारणवश पेड़ पौधों के अवशेष करोड़ों सालों तक जमीन के अंदर दबे रहते हैं तो बहुत मंद रासायनिक अभिक्रिया के द्वारा ऊर्जा के स्त्रोत में बदल जाते हैं जिन्हें कोयला कहते हैं ।

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला तीन प्रकार के होते हैं -

1 - भूरा कोयला या लिग्नाइट कोयला :-

इसमें 38 प्रतिशत कार्बन होता है ।

2 - बिटुमिनस कोयला :-

इसमें 65 % प्रतिशत कार्बन होता है ।

3 - एंथ्रेसाइट कोयला :-

इसमें 96 % प्रतिशत कार्बन होता है ।

पेट्रोलियम :-

गहरे भूरे काले रंग का गाढ़ा चिपचिपा तरल पदार्थ जो करोड़ों सालों में भूमि के अंदर जीवो के अवशेषों से बनता है और कई हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है , पेट्रोलियम कहलाता है।

पेट्रोलियम गैस :-

पेट्रोलियम के शोधन के दौरान उत्पन्न होने वाली गैसों के मिश्रण को पेट्रोलियम गैस कहते हैं , जिसमें मुख्य घटक ब्यूटेन होता है ।

पेट्रोलियम गैस के तरल रूप को लिक्विड पेट्रोलियम गैस LPG कहते हैं ।।

LPG के उपयोग में सावधानियां -

1- गैस का रिसाव नहीं होना चाहिए।

2- गैस की गंध आने पर खिड़की दरवाजे खोल देनी चाहिए ।

3- रबर ट्यूब सही होना चाहिए ।

4 - रिसाव की स्थिति में बिजली के स्विच चालू या बंद नहीं करना चाहिए।

5- उपयोग के बाद गैस बंद कर देना चाहिए ।

प्राकृतिक गैस :-

तेल के कुओं में पेट्रोलियम के ऊपर कुछ गैसों का मिश्रण होता है जिसे प्राकृतिक गैस कहते हैं । इसका मुख्य घटक मेथेन होता है ।

दहन :-

ऑक्सीजन की उपस्थिति में किसी पदार्थ का जलना दहन कहलाता है । यह एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है।

ज्वलन ताप :-

जिस ताप पर कोई पदार्थ जलना शुरू करता है उसे उस पदार्थ का ज्वलन ताप कहते हैं ।

कैलोरी मान या उष्मीय मान :-

किसी ईंधन के इकाई द्रव्यमान को जलाने से जितनी ऊष्मा उत्पन्न होती है उसे उस ईंधन का उष्मीय मान या कैलोरी मान कहते हैं ।

अच्छे ईंधन या आदर्श ईंधन के लक्षण -

1- उच्च उष्मीय मान ।

2- उचित दहन ताप ।

3- दहन की संतुलित दर ।

4- कम मूल्य ।

5- पर्याप्त उपलब्धता ।

6- भंडारण तथा परिवहन में आसानी ।

7- अवशेष का कम होना ।

8- विषैले पदार्थों की अनुपस्थिति ।

नाभिकीय ऊर्जा :-

किसी परमाणु के नाभिक से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं ।

नाभिकीय ऊर्जा दो अभिक्रियाओं से उत्पन्न होती है -

1- नाभिकीय संलयन अभिक्रिया

2 - नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया

1- नाभिकीय संलयन अभिक्रिया :-

जब दो हल्के नाभिक आपस में संयुक्त होकर एक बारी नाभिक बनाते हैं, तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन अभिक्रिया कहते हैं ।

जैसे- हाइड्रोजन के ड्यूटीरियम नाभिक आपस में जुड़कर हीलियम के भारी नाभिक और ऊर्जा बनाते हैं

1H2 + 1H2 = 2He4 + 0n1 + 21.6 MeV ऊर्जा

यह क्रिया बहुत उच्च ताप पर होती है ।

क्रिया करने वाले पदार्थ रेडियोधर्मी नहीं होते हैं ।

इस क्रिया को नियंत्रित करना कठिन होता है ।

नाभिकीय संलयन क्रिया के आधार पर हाइड्रोजन बम बनाते हैं ।

नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया :-

जब किसी भारी नाभि पर मंद गति का न्युट्रान टकराता है तो वह दो हल्के नाभिकों में विभक्त हो जाता है इसे नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया कहते हैं ।

जैसे- यूरेनियम 235 के भारी नाभिक पर मंद गति के न्युट्रान टकराते हैं तो यह बेरियम और क्रिप्टान के हल्के नाभिकों में तथा तीन न्यूट्रान में टूट जाता है।

92U235 + 0n1 = 56Ba144 + 36Kr89 + 3 0n1+ ऊर्जा

यह क्रिया सामान्य ताप पर होती है ।

विखंडनीय पदार्थ रेडियोधर्मी होते हैं ।

इस क्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है ।

नाभिकीय विखंडन क्रिया के आधार पर परमाणु बम बनाते हैं।

श्रंखला अभिक्रिया :-

जब यूरेनियम 235 पर मंद गति का न्यूट्रान टकराता है तो यह दो हल्के नाविकों में टूटता है तथा तीन न्यूट्रान बनते हैं जब वे तीनो न्यूट्रान अलग-अलग यूरेनियम 235 भारी नाभिक से टकराकर उन्हें दो हल्के नाभिकों में और 3 न्युट्रानों में तोड़ देते हैं , फिर यह प्रत्येक न्यूट्रान अन्य भारी नाभिको तोड़ते है। इस प्रकार यह क्रिया अंतिम यूरेनियम नाभिक के टूटने तक चलती रहती है इसे श्रंखला अभिक्रिया कहते हैं ।

नाभिकीय रिएक्टर :-

वह युक्ति जिसमें नाभिकीय विखंडन से नियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया के सिद्धांतों पर उर्जा उत्पन्न होती है उसे नाभिकीय रिएक्टर कहते हैं ।

नाभिकीय रिएक्टर के उपयोग :-

1- विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में ।

2- प्लूटोनियम के उत्पादन में ।

3- तीव्रगामी न्युट्रानों के उत्सर्जन में ।

4- रेडियोधर्मी समस्थानिकों के निर्माण में ।

नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग :-

1- विद्युत उत्पादन तथा पनडुब्बियों को चलाने में ।

2- कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में ।

3- कृषि तथा उद्योग क्षेत्र में।

Friday, 12 January 2018

विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव ( megnetic effect of electric current)


विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव

magnatic effect of electric current.

विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव :-
किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर चुम्बकीय। क्षेत्र उत्पन्न होने की घटना को विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव कहते हैं ।

चुम्बकीय क्षेत्र :-
किसी चुम्बक के चारो ओर का वह क्षेत्र जहाँ तक चुम्बकीय बल का अनुभव किया जाता है , चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय सुई के उत्तरी ध्रुव के चलने के मार्ग को चुम्बकीय बल रेखा कहते है।

दाहिने हाथ के अंगूठे का नियम :-
यदि अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़ते हैं कि अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो , तो आपकी उंगलियां चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय बल रेखाओं की दिशाओ को प्रदर्शित करेगी ।

मैक्सवेल का नियम:-
यदि हम किसी पेंचकस को दाएं हाथ में पकड़कर इस प्रकार घुमाए कि पेंच की नोक चालक में बहने वाली धारा की दिशा में आगे बढ़े तो जिस दिशा में पेंच को घुमाने के लिए अंगूठा घूमता है वही चुम्बकीय बल रेखाओ की दिशा होगी ।

पाश या लूप :-
चालक तार को मोड़ने से बनी वृत्ताकार आकृति को पाश या लूप कहते हैं ।

परिनालिका :-
विद्युत रोधी चालक तारों के अनेक पैरों से बनी बेलनाकार आकृति को परिनालिका कहते हैं ।

फ्लेमिंग के बाएं हाथ का नियम:-
इस नियम के अनुसार अपने बाएं हाथ की तर्जनी मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार पर फैलाइये की ये एक दूसरे के परस्पर लंबवत हो ।
यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है एवं मध्यमा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करे तो अंगूठा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण :-
जब चुम्बक और कुंडली के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो कुंडली में धारा उत्पन्न हो जाती है । इस धारा को प्रेरित धारा करते हैं तथा इस घटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण करते हैं ।

फैराडे का नियम :-
प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है ।इसे फैराडे का नियम कहते हैं ।

विद्युत मोटर :-

परिभाषा:-
विद्युत मोटर वह यंत्र है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करता है ।

सिद्धांत :-
चुंबकीय क्षेत्र में रखी कुंडली विद्युत धारा प्रवाहित होने पर फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम अनुसार कार्य करती है ।

रेखाचित्र :-

विद्युत मोटर के मुख्य भाग :-

1- क्षेत्र चुंबक N S ,
2-कुंडली या आर्मेचर,
3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2,
4- ब्रुश B1 B2

1- क्षेत्र चुम्बक N S :-
यह अस्थाई चुंबक होता है ।

2- कुंडली या आर्मेचर :-
नरम लोहे के फ्रेम के ऊपर विद्युत रोधी चालक तारों को लपेटकर कुंडली बनाई जाती है जो एक धुरी पर घूमती है ।

3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2 :-
धातु के एक वलय को बीच से काटकर बनाए गए दो अर्धवृत्ताकार वलय कुंडली के सिरे इन विभक्त सर्पी वलयो से अलग अलग जुड़े होते हैं ।

4- ब्रुश B1 B2 :-
कार्बन या धातु की पत्तियों से बने ये ब्रुश दोनो विभक्त सर्पी वलयो S1 S2 को छूते रहते हैं । आर्मेचर ABCD में विद्युत धारा ब्रुश B1 B2 से होकर प्रवाहित होती है ।

कार्य विधि :-
कुंडली में धारा प्रवाहित होने पर यह फ्लेमिंग के बाँये हाथ के नियम अनुसार आधा चक्र पूर्ण कर लेती है तब सर्पि वलय की स्थिति बदल जाती है और यह वापस अपना चक्र पूर्ण कर लेती है इस प्रकार विद्युत मोटर में कुंडली घूमती रहती है और धारा की दिशा एक ही रहती है।

फ्लेमिंग के दाहिने हाथ का नियम :-
इस नियम के अनुसार अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि यह तीनों एक दूसरे के परस्पर लंबवत हो तब यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित धारा की दिशा दर्शाएगी।

डी सी जनित्र :-

परिभाषा :-
वह उपकरण जो यांत्रिक ऊर्जा को दिष्ट धारा में बदलता है डी सी जनित्र कहलाता है ।

सिद्धांत :-
विद्युत जनित्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।

रेखाचित्र :-

डी सी जनित्र के मुख्य भाग :-

1- क्षेत्र चुंबक N S ,
2-कुंडली या आर्मेचर,
3- विभक्त सर्पी वलय S1 S2,
4- ब्रुश B1 B2

कार्यविधि :-
जब कुंडली या आर्मेचर को घुमाया जाता है तो फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियमानुसार इसमें बाह्य परिपथ में धारा उत्पन्न होती है।

विद्युत धारा :-
आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं ।

धारा दो प्रकार की होती है -

1- सरल धारा या दिष्ट धारा
2 - प्रत्यावर्ती धारा

1- सरल या दिष्ट धारा (DC):-
वह धारा जिसके प्रवाह की दिशा समय के साथ सदैव धनात्मक बनी रहती है दिष्ट धारा कहलाती है ।
सेल या बैटरी से प्राप्त धारा दिष्ट धारा होती है ।

2- प्रत्यावर्ती धारा ( AC) :-
वह विद्युत धारा जिसके प्रवाह की दिशा समय के साथ धनात्मक या ऋणात्मक होती रहती है , प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है ।
घर में प्रदाय होने वाली धारा प्रत्यावर्ती धारा होती है।

घरेलू विद्युत परिपथ :-
घर में प्रयुक्त होने वाली प्रत्यावर्ती धारा का विभवांतर सामान्यतः 220 वोल्ट तथा आवृत्ति 50 चक्कर प्रति सेकंड होती है।
घरेलू विद्युत परिपथ में प्रत्येक उपकरण को प्रत्यावर्ती धारा स्त्रोत से समानांतर क्रम में जोड़ा होता है ।
घरेलू विद्युत परिपथ में तीन रंग के आवरण वाले तार होते हैं।
लाल रंग का विद्युत रोधी तार होता है जिसे विद्युतमय या धनात्मक तार तथा काले रंग के आवरण वाला उदासीन तार या ऋणात्मक तार होता है ।
विद्युतमय तार तथा उदासीन तार के बीच 220 वोल्ट का विभवांतर होता है ।यह दोनों तार एक मुख्य फ्यूज से होते हुए विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं । इसके पश्चात यह दोनों तार मुख्य स्विच (मेन स्विच ) से होते हुए घर के अंदर लगी विद्युत लाइन से जोड़े जाते हैं । विद्युत लाइन के तार घर के अन्य विद्युत उपकरणों जैसे बल्ब, ट्यूब लाइट, पंखा , कूलर आदि से समांतर क्रम परिपथ बनाते हुए जुड़े रहते हैं।
घर की विद्युत लाइन से एक हरे रंग के रबर का आवरण युक्त तार भी होता है जिससे भू संपर्क तार या अर्थिंग कहते हैं । यह तार विद्दुत लाइन के द्वारा घर के सभी विद्युत उपकरणों से जुड़ा रहता है । इस तार का एक सिरा घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से जुड़ा रहता है ।
भू संपर्क तार विद्युत उपकरण के ऊपर क्षरित अवांछित विद्युत धारा को अपने में से गुजार कर पृथ्वी में पहुंचा देता है। इस प्रकार विद्युत उपकरणों का उपयोग करते समय उपभोक्ता विद्युत आघात से बचे रहते हैं।

लघुपथन या शॉर्ट सर्किट :-
विद्युतमय तार तथा उदासीन तार के एक दूसरे के संपर्क में आ जाने के कारण विद्युत धारा के अचानक प्रवाह को लघुपथन या शार्ट सर्किट कहते हैं।

अतिभारण (ओवरलोडिंग ) :-
जब किसी परिपथ में अत्यधिक मात्रा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो इसे अतिभारण कहते हैं ।

फ्यूज तार :-
विद्युत परिपथ को लघुपथन तथा अतिभारण से होने वाली हानि से बचाने के लिए विद्युतमय तार के श्रेणी क्रम में एक उच्च प्रतिरोध तथा कम गलनांक का तार जोड़ा जाता है, जिसे फ्यूज तार कहते हैं ।

विद्युत के उपयोग में सावधानियां :-

हमें विद्युत का उपयोग करते समय निम्न सावधानियां रखनी चाहिए -
1 - घर के सभी उपकरण भू संपर्क तार से जुड़े होने चाहिए।
2- स्विच को ऑन ऑफ करते समय हाथ गीले नहीं होने चाहिए।
3- विद्युत उपकरणों का उपयोग रबर या प्लास्टिक की चप्पल पहनकर करना चाहिए।
4- विद्युत परिपथ में उचित गुणवत्ता के फ्यूज का उपयोग करना चाहिए ।
5- विधुत परिपथ के सभी संयोजन ठीक से कसे होने चाहिए तथा कोई तार खुला नहीं होना चाहिए।
6- विद्युत तार ,प्लग , साकेट तथा होल्डर उच्च गुणवत्ता के होने चाहिए।
7- विद्युत का उपयोग मितव्यवता से करना चाहिए।

Wednesday, 10 January 2018

विद्युत एवं उसके प्रभाव ( electricity and its effect )

विद्युत एवं उसके प्रभाव

( ELECTRICITY AND ITS EFFECTS )

विद्युत धारा :-
एकांक समय में चालक तार में प्रभावित आवेश की मात्रा को विद्युत धारा कहते हैं । इसे I से दर्शाते हैं।

धारा = आवेश / समय

I = Q / T

धारा का एस आई मात्रक एंपियर होता है इसे अमीटर से मापते हैं ।

विद्युत विभव :-
परीक्षण धनावेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक लाने में किए गए कार्य को उस बिंदु पर विधुत विभव कहते हैं । इसे V से दर्शाते हैं ।
विभव का मात्रक वोल्ट होता है । इसे वोल्टमीटर से मापते है।

1 वोल्ट = 1 जूल / 1 कुलाम

ओह्म का नियम :-
यदि चालक की भौतिक परिस्थितियों में कोई परिवर्तन ना हो तो चालक के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती होता है । यही ओह्म का नियम कहलाता है ।

V अनुक्रमनुपाती I
V=RI
R= V/I
यहां R एक नियतांक है , जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं। प्रतिरोध का मात्रक ओह्म होता है।

प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक :-
किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्न कारको पर निर्भर करता है -
1- तार के पदार्थ की प्रकृति पर
2- तार की लंबाई पर
3- तार की मोटाई पर
4- तार के ताप पर तार

1- पदार्थ की प्रकृति पर :-
भिन्न - भिन्न प्रकृति के पदार्थों का प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होता है ।

2- तार की लंबाई पर :-
चालक तार का प्रतिरोध , तार की लंबाई के अनुक्रमनुपाती होता है।
तार की लंबाई बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है ।

R अनुक्रमनुपति l

3- तार की मोटाई पर :-
चालक तार का प्रतिरोध तार की मोटाई के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
तार की मोटाई बढ़ने पर प्रतिरोध कम हो जाता है।

R व्युत्क्रमानुपाती A

4- तार के ताप पर :-
चालक तार का प्रतिरोध ताप के अनुक्रमनुपाती होता है।
ताप बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है ।
R अनुक्रमनुपाती t

प्रतिरोधको का संयोजन :-
प्रतिरोधको का संयोजन दो प्रकार से करते हैं -
1- श्रेणी क्रम संयोजन
2- समानांतर क्रम संयोजन

1- श्रेणी क्रम संयोजन :-
शुष्क जब एक प्रतिरोधक का दूसरा सिरा , दूसरे प्रतिरोधक के पहले सिरे से जोड़ा जाता है तो इस प्रकार के संयोजन को प्रतिरोधको का श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं।
R = R1 + R2 + R3

2- समानांतर क्रम संयोजन :-
किन्हीं दो या दो से अधिक प्रतिरोधको के एक ओर के सिरे एक साथ एक बिंदु पर तथा दूसरे सिरे एक साथ किसी अन्य बिंदु पर जोड़ने से बने संयोजन को समानांतर क्रम संयोजन कहते हैं।
1/R = 1/R1 + 1/R2 + 1/R3

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव:-
जब हम उच्च प्रतिरोध वाले तार जैसे नाइक्रोम तार में विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं तो वह बहुत गर्म होते हुए लाल हो जाता है तथा ऊष्मा देने लगता है इसे धारा का उष्मीय प्रभाव करते हैं ।
जैसे विद्युत प्रेस, विद्युत हीटर में।

विद्युत शक्ति :-
एकांक समय में किए गए कार्य को विद्युत शक्ति कहते हैं।
शक्ति = कार्य / समय

शक्ति का -
SI मात्रक - वॉट है ।
यांत्रिकी में मात्रक- अश्वशक्ति है ।
1 अश्वशक्ति = 746 वॉट

शक्ति का व्यावहारिक मात्रक किलो वाट घंटा है जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में यूनिट कहते हैं।

विद्युत धारा का रासायनिक प्रभाव :-
विद्युत धारा का वह प्रभाव , जिसके कारण विद्युत अपघटन की क्रिया होती है , धारा का रासायनिक प्रभाव कहलाता है।

फैराडे के विद्युत अपघटन के नियम :-

प्रथम नियम :-
विद्युत अपघटन की क्रिया में किसी इलेक्ट्रोड पर मुक्त हुए पदार्थ का द्रव्यमान उस में प्रवाहित आवेश की मात्रा के समानुपाती होता है।
m समानुपाती Q

द्वितीय नियम :-
यदि विभिन्न विद्युत अपघटयो में समान प्रबलता की विद्युत धारा समान समय तक प्रवाहित की जाए तो इलेक्ट्रोडो पर जमा हो पदार्थों के द्रव्यमान उनके विद्युत रासायनिक तुल्यांक के समानुपाती होते हैं।
m समानुपाती E

विद्युत लेपन :-
विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव द्वारा एक धातु की सतह पर किसी दूसरे धातु का लेपन करने की क्रिया को विद्युत लेपन करते हैं ।
विद्युत लेपन विद्युत अपघटन के सिद्धांत पर आधारित होता है।
जैसे - लोहे के फूलदान पर तांबे का लेपन करना।
धातु की जिस वस्तु पर लेपन करना होता है उसे अच्छी तरह साफ करके उचित विद्युत अपघट्य में कैथोड के स्थान पर लतका देते हैं तथा जिस धातु की कलई (लेपन) करना होता है उसकी छड़ या प्लेट को एनोड के स्थान पर लटका देते हैं ।
जब विद्युत अपघट्य में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो एनोड के स्थान पर प्रयुक्त धातु की छड़ घुलने लगती है और उसकी परत कैथोड पर रखी वस्तु पर जमने लगती है।
इस प्रकार किसी धातु की वस्तु पर अन्य धातु कि कलई या लेपन हो जाता है।

विद्युत रासायनिक सेल :-
विद्युत सेल वह युक्ति है जिसके द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते है।

शुष्क सेल :-
शुष्क सेल में विद्युत रासायनिक पदार्थ ठोस अवस्था में होता है इसलिए इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना और उपयोग करना आसान होता है ।
सामान्यतः टॉर्च , ट्रांजिस्टर, रेडियो और खिलौनों में हम शुष्क सेल का उपयोग करते हैं ।
शुष्क सेल में जस्ते के बेलनाकार पात्र कैथोड और इसमें स्थित एक कार्बन की छड़ एनोड का कार्य करती है ।
इनके बीच मे अमोनियम क्लोराइड , जिंक क्लोराइड , मैगनीज डाई ऑक्साइड और कार्बन का चूर्ण भर देते है जो विद्युत अपघट्य का काम करते है।
कार्बन के एनोड के उपरी सिरे पर पीतल की टोपी लगी होती है।

Monday, 8 January 2018

प्रकाशीय यंत्र ( optical instrument )


प्रकाशीय यंत्र ( optical instrument )

सूक्ष्मदर्शी :-

वह प्रकाशिक यंत्र जो सूक्ष्म वस्तुओं का बड़ा व स्पष्ट प्रतिबिंब बनाता है उसे सूक्ष्मदर्शी कहते हैं ।

सूक्ष्म दर्शी के प्रकार -

1- सरल सूक्ष्मदर्शी

2- संयुक्त सूक्ष्मदर्शी

दूरदर्शी:-

वह प्रकाशिक यंत्र जो दूर स्थित वस्तु का स्पष्ट और बड़ा प्रतिबिंब बनाता है उसे दूरदर्शी कहते हैं ।

दूरदर्शी के प्रकार -

1 - खगोलीय दूरदर्शी - आकाशीय वस्तु के लिए।

2 - पार्थिव दूरदर्शी - जमीन पर स्थित वस्तु के लिए

वर्णक्रम और वर्ण विक्षेपण :-

प्रकाश को प्रिज्म से गुजारने पर प्रकाश किरण अपने अवयवी रंगों में विभक्त हो जाती है रंगों के इस समूह को वर्ण क्रम या स्पेक्ट्रम और इस घटना को वर्ण विक्षेपण कहते हैं ।

वर्णक्रम में रंगों का क्रम :- बेजनिहपिनाला (VIBGYOR)

1- बैगनी

2- जामुनी

3- नीला

4- हरा

5- पीला

6- नारंगी

7- लाल

दृश्य प्रकाश में सबसे कम तरंगधैर्य बैंगनी रंग का और सबसे अधिक तरंगदैर्ध्य लाल रंग का होता है ।

प्रकाश के तीन मूल रंग लाल, हरा तथा नीला है।

Sunday, 7 January 2018

प्रकाश : प्रकृति, परावर्तन एवं अपवर्तन


प्रकाश : प्रकृति ,परावर्तन एवं अपवर्तन
light : nature , reflection and refraction

परावर्तन :-
प्रकाश का किसी सतह से टकराकर उसी माध्यम में वापस लौटना परावर्तन कहलाता है ।

परावर्तन के नियम:-
1- आपतन कोण का मान सदैव परावर्तन कोण के बराबर होता है ।
2- आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में स्थित होते हैं ।

दर्पण सूत्र:-
दर्पण की फोकस दूरी f , दर्पण से वस्तु की दूरी u और प्रतिबिंब की दूरी v के बीच संबंध बताने वाले सूत्र को दर्पण सूत्र कहते हैं ।

दृष्टि दोष :-
किसी व्यक्ति की आंखों में दृष्टि से संबंधित जो दोष उत्पन्न होते हैं उन्हें दृष्टिदोष कहते हैं ।
दृष्टि दोष चार प्रकार के होते हैं -
1 -निकट दृष्टि दोष
2- दूर दृष्टि दोष
3- जरा दृष्टि दोष
4- दृष्टिवैषम्य

1-निकट दृष्टि दोष:-
जब मनुष्य पास की वस्तु तो स्पष्ट देख सकता है लेकिन दूर की नहीं तो इसे निकट दृष्टि दोष कहते हैं ।

कारण-
1- लैंस से रेटिना की दूरी बढ़ जाए ।
2 -लैंस मोटा हो जाए।

निवारण:-
निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का उपयोग करते हैं ।

दूर दृष्टि दोष :-
जब मनुष्य दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट देख सकता है लेकिन पास की नहीं तो इसे दूर दृष्टिदोष करते हैं ।

कारण:-
1- लेंस से रेटिना की दूरी कम हो जाए।
2- लेंस पतला हो जाए ।

निवारण :-
दूर दृष्टि दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का उपयोग करते हैं।

प्रकाश का अपवर्तन:-
जब प्रकाश की कोई किरण किसी एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाती है तो माध्यम बदलते समय वह अपने मार्ग से विचलित हो जाती है प्रकाश के व्यवहार से जुड़ी इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो वह अभिलंब की ओर झुक जाती है और जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलंब से दूर हट जाती है ।

लैंस :-
दो पृष्ठों से घिरा पारदर्शी माध्यम जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय हो लैंस कहलाता है।
लैंस दो प्रकार के होते हैं -
1- उत्तल लेंस
2- अवतल लेंस

लैंस की क्षमता का SI मात्रक डॉइप्टर है ।

तारों का टिमटिमाना :-
पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर वायु का घनत्व क्रमशः कम होने लगता है इसके साथ साथ पृथ्वी पर ताप परिवर्तन के कारण तथा वायु कणो की गतिशीलता के कारण विभिन्न परतों का घनत्व परिवर्तित होता है ।
अतः किसी तारे से आने वाली किरणें लगातार अपना मार्ग बदलती रहती है जिसके कारण पृथ्वी पर अवलोकन करते समय मनुष्य की आँखों में प्रवेश करने वाली किरणों की संख्या लगातार बदलती रहती है ।अतः तारे टिमटिमाते हुए दिखाई देते हैं ।

वास्तविक प्रतिबिंब:-
वह प्रतिबिंब है जिसे पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है उसे वास्तविक प्रतिबिंब कहते हैं ।
यह उल्टा बनता है ।

आभासी प्रतिबिंब:-
वह प्रतिदिन जिसे पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है, उसे आभासी प्रतिबिंब कहते हैं ।
यह सीधा बनता है।

Saturday, 6 January 2018

अंतरिक्ष अन्वेषण ( space exploration )

अंतरिक्ष अन्वेषण ( SPACE EXPLORATION )
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विश्व में अंतरिक्ष में भेजा गया प्रथम कृत्रिम उपग्रह - स्पुतनिक फर्स्ट (सोवियत संघ रूस द्वारा )

अमेरिका द्वारा भेजा गया प्रथम कृत्रिम उपग्रह- एक्सप्लोरर वन

भारत द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया प्रथम उपग्रह- आर्यभट्ट

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी का नाम- नासा (NASA) NASA- नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एंड एडमिनिस्ट्रेशन

भारत की अंतरिक्ष एजेंसी का नाम -इसरो(ISRO)
ISRO- इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन

भारत द्वारा भेजे गए कुछ प्रमुख कृत्रिम उपग्रह-
इनसैट (INSAT)- इंडिया नेशनल सेटेलाइट
एडुसैट (EDUSAT)-एजुकेशन सैटेलाइट शिक्षा के लिए
रोहिणी (ROHINI)-खगोलीय प्रेक्षण के लिए

राकेट नोदक :-
                  रॉकेट में एक विशेष प्रकार के ईंधन की आवश्यकता होती है जिससे राकेट नोदक कहते हैं ।

राकेट के ईंधन (नोदक) के प्रमुख गुण:-
1- तीव्र गति से दहन होना चाहिए । 
2- दहन के बाद कोई विशेष न रहना चाहिए


Thursday, 4 January 2018

कक्षा 10 वी -सौरमंडल (universe)

हमारे सौरमंडल का मुखिया सूर्य है।

सूर्य एक तारा है जिसके चारों ओर निश्चित कक्षा में आठ ग्रह परिक्रमा करते हैं ।

ग्रहों के नाम है -

1 बुध

2 शुक्र

3 पृथ्वी

4 मंगल

5 बृहस्पति

6 शनि

7 अरुण

8 वरुण

इनके अतिरिक्त एक और ग्रह यम (प्लूटो) था जिसे अब ग्रहों की श्रेणी से हटा दिया है ।

1 बुध -

यह सूर्य के सबसे निकट तथा सबसे छोटा का ग्रह है ।

2 शुक्र -

यह सबसे अधिक गर्म और सबसे अधिक चमकीला है ग्रह है। इसे भोर का तारा या संध्या का तारा भी करते हैं ।यह पृथ्वी के सबसे निकट है ।

3 पृथ्वी -

इसे नीला ग्रह या जीवित ग्रह भी कहते हैं । सौरमंडल के केवल इसी ग्रह पर जीवन पाया जाता है ।

4 मंगल -

इसे लाल ग्रह कहते हैं । इसके लाल होने का कारण लोह आक्साइड है ।

5 बृहस्पति -

यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जिस पर विशाल रक्तिम धब्बा ( ग्रेट रेड स्पॉट ) देखा गया है ।

6 शनि -

इसे सबसे सुंदर ग्रह कहते हैं क्योंकि इसके चारों ओर स्पष्ट सुदर्शन वलय पाई जाती है ।

7 अरुण -

यह हरे रंग का ग्रह है जिसे इंद्र भी कहते हैं ।

8 वरुण -

यह सूर्य से सबसे अधिक दूर स्थित ग्रह है।

सौरमंडल:-

पृथ्वी की बाहरी परत- भूपर्पटी
मध्य परत - प्रावार
आंतरिक परत- क्रोड
सूर्य एक तारा है
जोवियन समूह का प्रथम प्लेनेट -बृहस्पति
सूर्य के सबसे निकट और सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह- बुध सबसे बड़ा ग्रह- बृहस्पति
आर्यभटीय ग्रंथ के रचयिता- आर्यभट्ट
सबसे अधिक उपग्रह - शनि
हमारी आकाशगंगा का आकार- सर्पिलाकार
विश्व में सर्वप्रथम भेजा गया कृत्रिम उपग्रह -स्पुतनिक1
-सोवियत संघ (रूस )
एक्सप्लोरर वन- अमेरिका
आर्यभट्ट - भारत
पृथ्वी के क्रोड की त्रिज्या- 3400 किलोमीटर
अब ग्रह की श्रेणी में नहीं गिना जाता है -यम
सुदर्शन वलय पाई जाती है - शनि
विशाल रक्तिम धब्बा (ग्रेट रेड स्पॉट ) देखा गया- बृहस्पति
सप्तऋषि- तारामंडल
पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की दिखाई देने वाली परत- कोरोना
सबसे सुंदर ग्रह- शनि
सबसे अधिक गर्म और चमकीला ग्रह- शुक्र
लाल ग्रह- मंगल
प्रसिद्ध धूमकेतु का नाम -हेली
हेली धूमकेतु दिखता है - 76 वर्ष में
सबसे बड़े क्षुद्र ग्रह का नाम- सेरेस
सूर्य की पृथ्वी से दूरी -15 करोड़ किलोमीटर
सूर्य की आयु -5 अरब वर्ष

सौरमंडल-


ग्रह -

सूर्य के चारों ओर निश्चित कक्षा में चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंड को ग्रह कहते हैं ।
जैसे - पृथ्वी

उपग्रह -

वह आकाशीय पिंड जो किसी ग्रह के चारो ओर निश्चित कक्षा में चक्कर लगाते हैं उन्हें उपग्रह कहते हैं ।
जैसे - चंद्रमा

क्षुद्र ग्रह -

वे छोटे-छोटे आकाशीय पिंड जो मंगल और बृहस्पति की कक्षा के मध्य सूर्य का चक्कर लगाते हैं उन्हें क्षुद्र ग्रह कहते हैं ।
जैसे - सेरेस

तारे और ग्रह में अंतर :-
तारे ग्रह
1-ये स्वयं के प्रकाश से चमकते है। 1- ये सूर्य के प्रकाश से चमकते हैं।
2 -यह टिमटिमाते हैं । 2- यह टिमटिमाते नहीं है।

3-इनकी संख्या अनगिनत है।। 3- इनकी संख्या 8 है।
4- ये बड़े आकार के होते हैं। 4- ये तारों से छोटे होते हैं।
5- उदाहरण - सूर्य। 5- उदाहरण - बुध, पृथ्वी

पार्थिव ग्रह की विशेषता-
1- बाहरी आवरण पतला एवं चट्टानी हैं।
2- मध्य भाग में लोहा एवं मैग्नीशियम धातु की अधिकता है।
3- केंद्रीय भाग में द्रवित धातु है ।
4- इनके एक या दो चंद्रमा होते हैं ।

जोवियन ग्रह की विशेषताएं -
1- ये सभी किसी पिंड है ।
2- इनके परित: वलय प्रणालियां हैं ।
3- इनके अनेक चंद्रमा होते हैं।

तारामंडल:-
तारों वह समूह जो पहचानने योग्य आकृति एवं प्रतिरूप बनाता है ,तारामंडल कहलाता है ।
जैसे - सप्त ऋषी ( बिग बीअर) तारामंडल ।